Sunday, 5 January 2014

रुसवा हो गए वो जमाने मे ऐसे

रुसवा हो गए वो जमाने मे ऐसे ।
कि पलके झुकी तो फ़िर उठा ना सके ॥
दूर जाकर मुझसे, इम्तिहान ले रहे थे वो ।
चाहकर भी मुझे फ़िर पा ना सके ॥
कहते थे वो कि उन्हे दर्द नही होता ।
पर अश्को को अपने छुपा ना सके ॥
हम बने पत्थर उनकी जुदाई से ।
फ़िर कभी वो हमे रुला ना सके ॥
दिल जब टूटा, तो टुकडे हुए कुछ ऐसे ।
चाहकर भी वो उन्हे मिला ना सके ॥
आग जो लगी थी मेरे दिल के आंगन में ।
आंसुओ से अपने वो बुझा ना सके ॥
दिल से निकाला हमने उस बेवफ़ा को ऐसे ।
फ़िर वो मेरे दिल मे जगह बना ना सके ॥

हाथों मे हाथ डालकर जब चले थें हम

हाथों मे हाथ डालकर जब चले थें हम,
सारे जमाने की नजरों से ढले थे हम ।
सही थी जलालत-औ-रुसवाई सारे जहां की ,
फ़िर भी इरादे से अपने ना हिले थे हम ।
जुदा करने की हमें लाख कोशिशों के बाद भी,
शहर की पुरानी गलियों मे फ़िर मिले थे हम ।
सारे खंजर हो गए थे खून के प्यासे ,
बचकर काफ़िरों से किसी तरह निकले थे हम ।
बडी बेरहम है दुनिया ये जालिमों की।
जख्मों को अपने किसी तरह सिले थे हम ।
बडे बोझिल थे जुदाई के वो लम्हे, मगर
मिलने के बाद फ़ूलों की तरह खिले थे हम ॥

तुझे देखे बिना आराम नही अरमानों को

तुझे देखे बिना आराम नही अरमानों को ।
हमने शाम-ओ-शहर तेरी ही चाहत की है ॥
और तो कुछ भी नही मांगा हमने रब से ।
बस तुझे पाने की ही इबादत की है ॥
तू नही मिली तो क्या हुआ ए जान-ए-तमन्ना,
हमने तो तेरी तस्वीर से भी मौहब्बत की है ।
रुसवा हो गया अमित, जुदाई से तेरी ।
आखिर ये तुमने कैसी कयामत की है ॥

मेरी कविताओ की धड़कन हो तुम


मेरी कविताओ की धड़कन हो तुम...
मैंने एहसास लिखे है शब्दो में,
तुम्हारे साथ बीते लम्हो के,
हिसाब लिखे है शब्दो में....
मेरे शब्दो कि बेचैनी,
इनकी तड़पन हो तुम....
मेरी कविताओ की धड़कन हो तुम....!

तुम्हारे लिए जो छिपा है दिल में,
वो प्यार लिखा है शब्दो में....
मेरी कविताओ की धड़कन हो तुम....!
मेरे होठों पर जो सजते है,
तुम्हारे गीत लिखे है शब्दो में...
तुमसे रूठते-मानते,अपनी हार तुम्हारी जीत...
लिखी है शब्दो में.....
मेरी साँसों में रहते हो तुम....
मेरा तो पूरा जीवन हो तुम....
मेरी कविताओ की धड़कन हो तुम....!!!