कि पलके झुकी तो फ़िर उठा ना सके ॥
दूर जाकर मुझसे, इम्तिहान ले रहे थे वो ।
चाहकर भी मुझे फ़िर पा ना सके ॥
कहते थे वो कि उन्हे दर्द नही होता ।
पर अश्को को अपने छुपा ना सके ॥
हम बने पत्थर उनकी जुदाई से ।
फ़िर कभी वो हमे रुला ना सके ॥
दिल जब टूटा, तो टुकडे हुए कुछ ऐसे ।
चाहकर भी वो उन्हे मिला ना सके ॥
आग जो लगी थी मेरे दिल के आंगन में ।
आंसुओ से अपने वो बुझा ना सके ॥
दिल से निकाला हमने उस बेवफ़ा को ऐसे ।
फ़िर वो मेरे दिल मे जगह बना ना सके ॥